भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भ्रम / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुअर नें
सुअरनी सें कहलकै
एक दिन
गदहा ऐना देखै रहै
ई देखकेॅ
आदमी ओकरा पर हाँसेॅ लगलै
ओकरा सें पूछलकै ई किए ?
वैं कहलकै
ऐना देखै दियै
कहीं छलकपट तेॅ नै
आय गेलै हमरा में
आदमी जैसन।