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शोकगीत / महमूद दरवेश / रामकृष्ण पाण्डेय

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हमारे देश में
लोग दुखों की कहानी सुनाते हैं
मेरे दोस्त की
जो चला गया
और फ़िर कभी नहीं लौटा

उसका नाम...

नहीं, उसका नाम मत लो
उसे हमारे दिलों में ही रहने दो
राख की तरह हवा उसे बिखेर न दे
उसे हमारे दिलों में ही रहने दो

यह एक ऐसा घाव है जो कभी भर नहीं सकता
मेरे प्यारो, मेरे प्यारे यतीमों
मुझे चिन्ता है कि कहीं
उसका नाम हम भूल न जाएँ
जाड़े की इस बरसात और आंधी में
हमारे दिल के घाव कहीं सो न जाएँ
मुझे भय है ।

उसकी उम्र…

एक कली जिसे बरसात की याद तक नहीं
चाँदनी रात में किसी महबूबा को
प्रेम का गीत भी नहीं सुनाया
अपनी प्रेमिका के इन्तज़ार में
घड़ी की सुइयाँ तक नहीं रोकीं
असफल रहे उसके हाथ दीवारों के पास उसके लिए

उसकी आँखें उददाम इच्छाओं में कभी नहीं डूबीं
वह कभी किसी लड़की को चूम नहीं पाया
वह किसी के साथ नहीं कर पाया इश्क़बाजी

अपने ज़िन्दगी में सिर्फ़ दो बार उसने आहें भरी
एक लड़की के लिए
पर उसने कभी कोई खास ध्यान ही नहीं दिया उस पर
वह बहुत छोटा था

उसने उसका रास्ता छोड़ दिया
जैसे उम्मीद का

हमारे देश में लोग उसकी कहानी सुनाते हैं
जब वह दूर चला गया
उसने माँ से विदा नहीं ली
अपने दोस्तों से नहीं मिला
किसी से कुछ कह नहीं गया
एक शब्द तक नहीं बोल पाया

ताकि कोई भयभीत न हो
ताकि उसकी मुंतजिर माँ की
लम्बी रातें कुछ आसान हो जाएँ
जो आजकल आसमान से बातें करती रहती है

और उसकी चीज़ों से
उसके तकिये से, उसके सूटकेस से
बेचैन हो-होकर वह कहती रहती है

अरी ओ रात, ओ सितारों, ओ खुदा, ओ बादल
क्या तुमने मेरी उड़ती चिड़िया को देखा है
उसकी आंखें चमकते सितारों-सी है
उसके हाथ फूलों की डाली की तरह है
उसके दिल में चाँद और सितारे भरे हैं
उसके बाल हवाओं और फूलों के झूले हैं

क्या तुमने उस मुसाफ़िर को देखा है
जो अभी सफ़र के लिए तैयार ही नहीं था
वह अपना खाना लिए बगैर चला गया
कौन खिलाएगा उसे जब उसे भूख लगेगी

कौन उसका साथ देगा रास्ते में
अजनबियों और खतरों के बीच
मेरे लाल, मेरे लाल

अरी ओ रात, ओ सितारे, ओ गलियों, ओ बादल
कोई उसे कहो

हमारे पास जवाब नहीं है
बहुत बड़ा है यह घाव
आँसुओं से, दुखों से और यातना से
नहीं बर्दाश्त नहीं कर पाओगी तुम सच्चाई
क्योंकि तुम्हारा बच्चा मर चुका है

माँ,
ऐसे आँसू मत बहाओ
क्योंकि आँसुओं का एक स्रोत होता है
उन्हें बचाकर रखो शाम के लिए
जब सड़कों पर मौत ही मौत होगी
जब ये भर जाएँगी
तुम्हारे बेटे जैसे मुसाफ़िरों से

तुम अपने आँसू पोंछ डालो
और स्मृतिचिह्न की तरह सम्भालकर रखो
कुछ आँसुओं को

अपने उन प्रियजनों के स्मृतिचिह्न की तरह
उन शरणार्थियों के स्मृतिचिह्न की तरह
जो पहले ही मर चुके हैं

माँ अपने आँसू मत बहाओ
कुछ आँसू बचाकर रखो
कल के लिए

शायद उसके पिता के लिए
शायद उसके भाई के लिए
शायद मेरे लिए जो उसका दोस्त है

आँसुओं की दो बूँदें बचाकर रखो
कल के लिए
हमारे लिए

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रामकृष्ण पाण्डेय