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नकेल / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल

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कौन तेरी नकेल खींच
ले जा रहा तुझे किधर?

तुझे
तेरा चारा नहीं मिला।

बिक चुकी है तेरी खाल
तेरी हड्डियों की क़ीमत लग चुकी है।

नाली की गन्ध सूँघने न दें
खींची हुई नकेलें।
जमा हुआ लहू तुम सूँघना चाहो।

काश ! कभी तुम यह जान सको
तुम्हारा अपना ही माँस
कितना स्वादिष्ट है।

मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल