भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नकेल / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 12 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कौन तेरी नकेल खींच
ले जा रहा तुझे किधर?
तुझे
तेरा चारा नहीं मिला।
बिक चुकी है तेरी खाल
तेरी हड्डियों की क़ीमत लग चुकी है।
नाली की गन्ध सूँघने न दें
खींची हुई नकेलें।
जमा हुआ लहू तुम सूँघना चाहो।
काश ! कभी तुम यह जान सको
तुम्हारा अपना ही माँस
कितना स्वादिष्ट है।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल