भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिपाही / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 12 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिनको तूने खड़ा किया था
कि वे हवा में उलटी ओर पोजिशन लेके
खड़े रहें।
दरख़्त टूट-टूट पड़े
रोशनियाँ उलट-उलट गईं।
कोई बाँह टूट गई
कोई तलवार झड़ गई
कोई वैसे का वैसा
टेढ़ा खड़ा हुआ है।
कोई ढेर हो गया
काफ़ी कुछ के साथ।
साँय-साँय करती हवा में
रात-रात गहरे होते रहते
अन्धेरों में
उन्होंने दिल नहीं हारा
न ही मुस्कुराना छोड़ा
न ही ध्यान हटाया।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल