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बदलीं जा देसवा के खाका / विजेन्द्र अनिल

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बदलीं जा देसवा के खाका,
            बलमु लेइ ललका पताका हो।
          
          खुरपी आ हँसुआ से कइनीं इआरी
          जिनगी में सुनलीं मलिकवा के गारी
कबले बने के मुँह ताका,
            बलमु लेइ ललका पताका हो।

          ना चाहीं हमरा के कोठा-अटारी
          ना चाहीं मखमल आ सिलिक के साड़ी
बन करs दिल्ली के नाका,
            बलमु लेइ ललका पताका हो।

          राजा आ रानी के उड़े जहजिया
          हमनीं के केहू ना सुने अरजिया
जाम करs सासन के चाका,
            बलमु लेइ ललका पताका हो।

          तू बनिजा सूरज हम बनि जाइब लालि
          तू बनिजा झरना, हम बनबि हरियाली,
पंजा प फेंकी जा छक्का,
            बलमु लेइ ललका पताका हो।

बदलीं जा देसवा के खाका,
            बलमु लेइ ललका पताका हो।

रचनाकाल : 15.10.1984