भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिजली बिल / गुरेश मोहन घोष
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुरेश मोहन घोष |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहलियै-जीबू! जरा लालटेन जराबें तेॅ।
बिजली के बिल ऐलोॅ छै, पढ़बै।