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शब्द नहीं मिलते / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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कविता
शब्द और शब्द की एक सार्थक श्रृंखला
संदर्भ को/परिवेश को/अव्यक्त व्यथा के भार को
चांदी के चांद और पीतल की धरती के
आकुल अंतर के बोझ को
कल्पना से उतारने का एक तरीका है
पर मुझे शब्द नहीं मिलते
भोर का तारा जो कभी कवि कल्पना को
उजागर करता था
मेघों से भरा आकाश
कनुप्रिया के दर्द को उकसानेवाला
सब कुछ तो अनुकूल हैं
पर उन सब को कहने के लिए
मुझे शब्द नहीं मिलते
मैं क्या लिखता हूँ-कविता या अकविता
दर्द या पीड़ा
समय के संकेत पर आते-जाते हर क्षण/जीवन-मृत्यु
मैंने इन्हें कुछ जाना है/कुछ समझा है
पर कहने के लिए मुझे शब्द नहीं मिलते
फर्ज अदायगी का यह रस्म
एक मोह ही तो है
विचारों की निरर्थक भीड़-भाड़
आज जीवन की संध्या में
मैं सब कुछ कह लेना चाहता हूँ
सम्बन्ध/निभते और निभाते
पर मुझे शब्द नहीं मिलते