इसे क्या कहोगे / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
यह क्या है मेरे दोस्त
कि जब मेरे पिता ने
मुझे जन्म दिया था
तब भी मैं नंगा था
और जन्म से लेकर
अब आजादी के बाद भी
मैं नंगा ही हूँ ।
पूरे पैंसठ वर्श के बाद भी
अपनी देह को ढक नहीं पाया
इसे तुम क्या कहोगे मेरे दोस्त ?
अन्तहीन नाटक
आज भी
बीते कल का ही नाटक होगा
लागातार सीटी बजने
और शोर होने के बाद
अब पर्दा उठा है
लोग किसी भुतहा मकान की तरह शांत हैं
मंच पर इन्द्र हैं
और विश्वामित्र क्रोध में
क्या-क्या कहे जा रहे हैं
देवमुख और ऋशिमुख से हो रहे
गालियों का प्रयोग जारी है
दृश्य बदले, शैव्या बेची गई
धार्मिक नगर के एक धनवान ने
खरीदी है
दक्षिणा चुकाने के लिये
राजा डोम के घर बिकेंगे
सिंहासन पर
विश्वामित्र ऊँघ रहे हैं
आदेश की प्रतीक्षा में
सभाशद भी थककर सो रहे हैं
इधर दृश्य परिवर्त्तन के लिये
पेक्षागृह में प्रेक्षकों का शोर जारी है।