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लक्ष्य मेरे लघु जीवन का / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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सीने में जलन, ओठों पे हँसी
है लक्ष्य मेरे, लघु जीवन का।
मैं वही शलभ हूँ जो जलकर
जग रौशन करने आता,
बिन कहे कहानी निज दिल की
तिल-तिल है जल जाता।
यह दुनिया है दो दिन की ही
एक सुख का है, एक दुख का,
यह जीवन है दो क्षण का
एक बादल का, एक रवि का।
फिर पड़े हुए इस मोह जाल में
डरना क्या, शरमाना क्या ?
दिन रो-रोकर झुठलाना क्या ?
साहस खो पछताना क्या ?
बदली से पूछो रोती क्यों ?
सूरज से पूछो जलता क्यों ?
झरने से पूछो बिना रुके,
संदेश गीत का देता क्यों ?
हर क्षण पर विधि का बंधन है
तम ग्रसित क्षणिक यह जीवन है,
पर क्यों दुख से हम कुंठित हों ?
यह बात नहीं कुछ शोभन है।
जर्जरित विश्व यह क्यों चाहे ?
दो दिन के सुख का जीवन।
जिससे आलोकित हो जाये
सुधारहित मानव-जीवन।