भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम और मैं / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 5 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं सागर की तरह
बैठा रहा,
मौन, शांत, गंभीर
न जाने कब से
कि तुम नदी की तरह आओगी,
लेकिन तुम नहीं आई !
मेरी आँखें
आकाश की तरह तनी ही रह गई !
तुम क्षितिज बनकर आ सकती थी
परन्तु तुम मेरे लाख चाहने के बावजूद
-भी नहीं आई।
तुम अर्जुन के तीर की तरह निकलती रही
और मैं
भीष्म सा बींधता रहा।