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तुम और मैं / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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मैं सागर की तरह
बैठा रहा,
मौन, शांत, गंभीर
न जाने कब से
कि तुम नदी की तरह आओगी,
लेकिन तुम नहीं आई !
मेरी आँखें
आकाश की तरह तनी ही रह गई !
तुम क्षितिज बनकर आ सकती थी
परन्तु तुम मेरे लाख चाहने के बावजूद
-भी नहीं आई।
तुम अर्जुन के तीर की तरह निकलती रही
और मैं
भीष्म सा बींधता रहा।