भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काठ और लोहा / दीपिका केशरी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 13 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम में डूबी स्त्री काठ हो जाती है
और
प्रेम में डूबा पुरुष लोहा !
फिर उस काठ से
चौखटें, दरवाज़े, खिड़कियां, अलमारियां
संदूक बनाएं जाते हैं
उन सारी वस्तुओं में लोहे की कील ठोकें जाते हैं
इस तरह से प्रेम चौखटों, दरवाजों, खिड़कियों,
अलमारियों और छोटे बड़े संदूको में वर्षों जीवित रहता !