भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोटी की निर्लज्ज आहुति / राकेश पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फुटपाथ के एक कोने में अरसे से पड़ा वह बूढा
रोटी की फिलासफी का शोध छात्र सा था
वह था जो रोज रोटी की बात करता था
सपनों में तस्वीरें भी उसकी गोल रोटी की होती थी
उसके इर्द गिर्द बिखरे पन्नों में
नारे भी कई थे लिखे हुए रोटियों पर
उसके लिखे हुए आड़ी तिरक्षी लकीरों में
भूख का ही प्रमेय और उपप्रमेय सिद्ध होता था
पर आज कुछ उल्टा हुआ था
भूख से उथले पेट
उल्टा आँखे तरेर टकटकी लगाए
चंद्रमा की परछाई में रोटी का परावर्तन ढूंढ़
फर्श पे दो शब्द उकेरे थे उसने "रोटी"
शायद रोटी और भूख के प्रमेय में
मरने से पहले लिखे दो अक्षर
उसी रोटी की निर्लज्ज आहुति थी वहां !