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कुछ लड़कियाँ / पूनम अरोड़ा 'श्री श्री'

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कुछ लड़कियाँ
स्वप्नों का शुक्ल पक्ष होती हैं.
आधी जागी और आधी सोई सीं.

उनके प्रेम में वही अबोधता होती है
जो समुद्री रेत में होती है.

कुछ लड़कियाँ
जंगल में उगे एक अनाम फूल की तरह होती है.
जो अमृत का घूँट बन
कंठ के ताबीज़ को एक इच्छा में बदल कर
समर्पण का सारा नक्षत्र
अपनी उंगलियों पर नचा देगी.

कुछ लड़कियाँ
पानी होती हैं.
जिन्हें हर नदी की स्मृति जन्म से मिलती है.
वो जिस भी पानी को छूती हैं
उसी में कई जन्मों तक भीगी रहती हैं.

कुछ लड़कियाँ
रात का नमी होती हैं.
जिन्हें धूप अपनी रोशनी में सुखा कर
उनके माथों पर
सिन्दूरी होंठों का स्पर्श दे जाती है.

और कुछ लड़कियाँ
एक याद होती हैं.
जो न कुछ बोलती हैं न सुनती हैं.
उनके हाथ कड़े और पैर रूखे होते हैं.
वो अक्सर गीतों को अधूरा गया कर
छोड़ देती हैं.

दुनिया को वो लड़कियाँ
ऐसे याद आती हैं जैसे वे एक रहस्य थीं.
वो लड़कियाँ
सबसे ज्यादा मरती हैं.
और सबसे ज्यादा पैदा होती हैं.

वो लड़कियाँ
ऊँटो को चूमती हैं.
घोडों को नहलाती है.
और मछलियों को दाना समय पर देती हैं.

ईश्वर की साँवली गुमशुदा लड़कियाँ
उसके गाँव में जब उत्सव मनाती हैं
तो लोग इसे मौसमी हलचल मान
एक पल
अपनी किसी मरी बेटी को याद कर
काम पर लौट जाते हैं.

अपने खेत,अन्न और पापों को देखने.

( मनजीत कौर टिवाणा को पढ़ते हुए )