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हरिया खेतिहर की औरत / ब्रजमोहन
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हरिया खेतिहर की औरत नंगी मरी मिली,
सबने देखा खेतों की भी आँखें डरी मिलीं...
ज़मींदार के नाख़ूनों को सबने पहचाना
नकली आँख पड़ी है, था पटवारी भी काना
और दरोगा के जूतों की छापें हरी मिलीं...
बल्लम धँसा हुआ छाती में सूखा हुआ लहू
मरने तक जी तोड़ लड़ी होगी हरिया की बहू
जिसने उसको देखा उसकी आँखें जली मिलीं...
’ज़मींदार-पटवारी और दरोगा — तेरी माँ...
हरिया चीख़ उठा ’ओ कुत्ते घर से बाहर आ’...
गाँव-भर के सीने में चिंगारी धरी मिली...