भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं 'मौन' हूँ / एल्सा ग्रावे
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:55, 16 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= एल्सा ग्रावे |संग्रह= }} <Poem> मैं मौन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं मौन हूँ
उस मीन का जो तैरती है
गहरे में समुद्री फूलों के मार्ग पर
समुद्री शैवाल कुञ्जों के बीच से.
मैं चुप्पी हूँ अंडे की
जिसमें बढ़ता है पक्षी
नीले कवच के तहत
और रक्त के घूमते जालक्रम में.
मैं वह मौन हूँ
जो मूक फूल महसूसते हैं
जब पेड़ गाते हैं अपने तूफानों का गीत,
मैं वो हूँ जो है स्थित
पृथ्वी के श्वेत हृदय में.
मैं नहीं हूँ भावशून्यता, न ही क्षयता
और कठोरता,
मैं पत्थर का मौन हूँ
वह कठोर पत्थर
मेरी भयानक चीख है.
(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)