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यात्रा / सुरेश चंद्रा
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यात्रा तय है
सुनिश्चित करनी हैं,
केवल राहें
भूल संभव है
भटकाव भी
अनगिनत सरायों में
ठहराव भी
निरभ्र सन्निधि
सुदूर चलती है
बेसब्र नियति
धीमी जलती है
यात्री, चयनित है
फिर भी, उसे चयन करना है,
गति और गंतव्य
गाथाओं के लिये
विदा से जन्मती,
नयी यात्राओं के लिये.