भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोशनी की लकीर / पूनम अरोड़ा 'श्री श्री'
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 20 अक्टूबर 2017 का अवतरण
{KKGlobal}}
मैत्रेय!
तुम अपनी स्फुट परिस्थितयों के साथ आना.
मेरी सभ्यता का अंश प्रकाशित हो चुका है.
तुम्हारे वास्तविक एकाकीपन में
मैंने रोशनी की एक लकीर देखी है.
तुम्हारे पाँव
मेरी बोली समझते हैं.