भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भारतीय दीवारें / जया पाठक श्रीनिवासन

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 21 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर की दीवारें
साथ लाती परिवारों को
देती एक छत
देती हमारे स्व को
परिभाषा, परिधि और आकार
बनती एक अवलंब
सर टिकने को
या बांटती भाइयों को,
तोड़ती घर
बनती राजनीतिक पोस्टरों की आधार,
धार्मिक उन्मादों का फ्रेम,
बॉलीवुड का फोटो-पहचानपत्र,
या भारतीय पुरुष की पहचान
फिर वह पान की पिच्च हो
या लघुशंकाओं की मार
सब झेलती...
सच!
ये दीवारें कितनी हम जैसी हैं
सब चलता है इनपर
किन्तु कोई प्रतिकार नहीं...
भारतीय दीवारें खड़ी रहती हैं
यूँ ही
पहचान या प्रमाण बन
हमारे समाज की