भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुंबई : कुछ कविताएँ-7 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:33, 20 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=समरकंद में बाबर / सुधीर सक्सेना }...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुद्र से नहाकर निकली

मछेरन सी मुम्बई

खिलखिलाती है रात तारों के संग

बतियाती है चांद से घंटों

अंगड़ाई लेती है तो समुद्र फट पड़ता है युगल-घट में


हठात

देह से चिपक चमकते हैं रेत के कण

यक-ब-यक जीवन्त हो उठता है पोस्टर आवारा का

बिंदास नरगिस है बम्बई

रेत पर उसके पीछे आज भी

भाग रहा है

नीली आँखों वाला परदेसी राजकपूर।