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मुंबई : कुछ कविताएँ-3 / सुधीर सक्सेना
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जब भी कोई नन्हीं मछली
पहुँचती है
मछलियों की पाठशाला में
बड़ी मछली सुनाती है उसे
मुंबई का कथा
पानी में गोल घेरा बना
मछलियाँ गाती हैं
मुंबई के गीत
बरसों का संग-साथ है
मुंबई और मछलियों का
तभी तो
रात में देखो तो
मंत्रालय की सबसे उपरली मंज़िल से
ख़ूबसूरत एक्वेरियम में रखी
जगर-मगर करती बड़ी-सी
मछली नज़र आती है मुंबई।