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लाचारी / साँवरी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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तुम्हारे नहीं आने का कारण
मैं जानना चाहती हूँ प्यारे
मैं जानती हूँ कि
तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया

मैंने तो इतना भर ही कहा था
कि जब तक मेरे प्यार को
वृक्ष की छाया नहीं मिल जाती है
तब तक इसको छिपाया ही जाए।

उपहास से बचने के लिए ही तो ऐसा कहा था
बदनामी से डर कर ही तो
तुमने कभी सामाजिक मर्यादा भी सोची
सामाजिक स्वीकृति के बारे में भी
तुम्हारी तो बस एक ही जिद रही
कि प्रेम में सब कुछ छोड़ना पड़ता है।

गाँव-टोले की लाज
माँ-बहन का मोह
भाई-पिता का डर।

मैं जानती हूँ मेरे प्राण
कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
लेकिन करती तो करती क्या
तुम नहीं समझोगे
कितना मजबूत होता है माँ का स्नेह

मैं गाँव की गँवार लड़की
नहीं समझ सकी
कि हँसना और गाल फुलाना
दोनों एक साथ नहीं हो सकता है।

आज मैंने सबकुछ जान लिया है

प्यार का सच्चा अर्थ
कि इसमें चाहिए हिम्मत
द्वन्द्व की सामर्थ्य
सभी चीजों को त्याग पाने का साहस

खैर, मैं तो नहीं ही समझ सकी
लेकिन तुम भी तो इस तरह
कहाँ समझा सके मुझे।