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असमंजस / साँवरी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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अब तुम्हीं बताओ मीत
मेरे प्राणों के प्राण
कौन मुँह लेकर
उसी राह से होकर
निराश लौट कर जाऊँगी मैं
पूछेगा तो क्या बताऊँगी मैं ?
निराशा से भरे
मेरे मलीन चेहरे को देख कर
क्या सोचेगा वह
कैसे, क्या उत्तर दूँगी मैं
किस तरह पार उतरूँगी मैं ?

किस तहर कह पाऊँगी
कि जिसके लिए मरती-हफसती
दुल्हन-सी सजी आई थी
वही मेरा मीत नहीं आया।

किसे कहूँ अपना यह दुख
किसको सुनाऊँ अपने मन की बात

कौन सुनेगा,
कौन पूछेगा
किसको फुर्सत है
हाँ सखी, चन्दन तो पूछेगी जरूर
ऐसे में तुम्हीं आकर बताओ मेरे प्रियतम
मैं उसे क्या कहूँ ?