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बाढ़-अकाल बाढ़-अकाल / ब्रजमोहन

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बाढ़-अकाल - बाढ़-अकाल
ख़ुद ही आते हैं हर साल
बेचारी अपनी सरकार
करती तो है ख़ूब मलाल

कितना काम करे बेचारी
भाषण, वादे, परमिट, कोटे
फिर चुनाव की सरदर्दी भी
पक्की करनी पड़ती वोटें

और काम कितने सारे हैं
पैसे-पैसे की रखवाल

कितने बाँध बनाए आख़िर
कितनी नहर निकाले भाई
इतने सारे प्लान पड़े हैं
किसको देखे-भाले भाई

देश-विदेशी दौरे कितने
पूछ न क्या है दिल का हाल