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भूकम्प : कुछ कविताएँ-2 / सुधीर सक्सेना
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जब कभी
बेतरतीब होती हैं चीज़ें
हालाडोला आता है
और,
जब कभी
हालाडोला आता है
घोड़े दौड़ते हैं सरपट
पीठ पर घुड़सवारों के बगैर
टापों से रौंद डालते हैं घोड़े
आदमी बच्चे और औरतें
मंदिर, मस्जिद और मक़बरे
पीछे छोड़ जाते हैं वे
तबाही का हौलनाक मंज़र
सचमुच बहुत खतरनाक होती है
बेतरतीबियत
चाहे धरती के भीतर हो
या दिलों के अंदर।