भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढा पीपल : मैं / रामनरेश पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:17, 23 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने जब जब झाँझ, मंजीरे, ढोल, डफों के साथ
मस्त हो फगुआ गाया
तब-तब यह बूढ़ा पीपल खांसा
(यह बूढ़ा पीपल जिस पर पिछले साल भरे भादों था वज्र गिरा
खल्वाट हुआ कठजीवा जला नहीं)

जब-जब तरसा, डफली, पंचबजना के साथ
कढ़ाई चैती, घांटो,
तब-तब यह बूढ़ा पीपल खांसा
(यह बूढ़ा पीपल जिसकी नंगी डालें काट ले गए
गाँव-गँवई के लोग महामारी जब धधकी)

मैंने जब-जब हल्दी लगने का-सा सपना देखा
कुमकुम, अबीर की थाल भरी
तब-तब यह बूढ़ा पीपल खांसा
(यह बूढ़ा पीपल
जिसके नीचे बैठ अनादि शिव पूजा पाते?)