भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संरचना के लिए / रामनरेश पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 25 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वन्ध्या हो गयी हैं
घड़ी की सुईयाँ
डाक, तार, टेलीफ़ोन, केबुल घरों में
केवल बहती हैं
सब्जियों, मछलियों और दवाओं की कीमतें
गुम होती जाती हैं अखबारों में
यात्रियों की कतारें
समन्वय और साम्यवाद के शीर्षासन
छंटनी, भावी भुगतान और समाज
चुप देखता है
वामपंथी, दक्षिणपंथी बुद्धों का समूह और दल,
परिवार नियोजन पर वक्तव्य देती हैं
कुवांरी लड़कियाँ
परित्याक्ताएं स्वैरिणी पत्नियाँ
नपुंसक पुरुष और ध्वजभंगी, शीघ्रपाती अधेड़ लोग
काशी का एक ब्राह्मण बालक ढूंढता है
ऋग्वेद की प्रथम ऋचा, पहला मन्त्र
ढूंढती है शोयबा खातून
कुरआन के पहले सुर
चर्च के बपतिस्मा के जल में डूब गयी हैं
दसो आज्ञायें,
एक नूह अपनी नाव पर संकलित कर रहा है शुक्रकीट ,
एक मार्कंडेय ढूंढ़ता है वटवृक्ष की गर्भिणी पत्तियां
अब मेरे और ग्रहपिंडों के बीच
युयुत्सा, जिजीविषा, सिसृक्षा
किसी भी संरचना के लिए
आत्मान्वेषण में हैं संलग्न, संयुत