भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिनगी रोॅ दीया / बिंदु कुमारी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:33, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिंदु कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊ! एक दीया छेकै
जे जरतेॅ रहै छै
बिना तेल के भी।
ऊ! एक बंधन छेकै
जे बान्हलोॅ रहै छै
बिना गाँठो के भी।
ऊ! एक समुन्दर छेकै
जे फैलतेॅ रहै छै
बिना बहस के भी।
ऊ! एक समुन्दर छेकै
जे उफनलतेॅ रहै छै
बिना तूफान के भी।
ऊ! एक मोती छेकै
जे गुंथलोॅ जाय छै
बिना चाँदी के भी।
ऊ! एक विश्वास छेकै
जे पनपते रहै छै
बिना सोच के भी।
जानै छोॅ ऊ की छेकै?
ऊ! छेकै गुलाब के फूल
जे आपनोॅ अतीत के कहानी कहै छै।
नुकैलोॅ छै
हमरोॅ किताबोॅ रोॅ बीचोॅ मेॅ।
मन रोॅ कोना मेॅ
गोकुल रोॅ गल्ली मेॅ
समय पाबी केॅ एकबारगी
खट-खटाय केॅ हाँसी पड़तै
छाती सेॅ सट्टी जैतै
आरो समुच्चा वातावरण
मिठ्ठोॅ खुशबू सेॅ गमकी उठतै।