भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद बचपन के / बिंदु कुमारी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिंदु कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इंतजार रहै छेलै
बाबू जी रोॅ
कखनी लौटतैं पंचायती सें घोॅर
नासमझ छेलियै तखनी
बाबूजी सेॅ पियार छेलै
मतर कि बाबू जी रॉे साइकिल सेॅ
आरो जादा-
पाँचमी क्लासोॅ मेॅ पढ़ै छेलियै
आरो साइकिल चौबीस इंची।
तखनी कहाँ होय छेलै
साइकिल सबरोॅ घरोॅ मेॅ
बच्चासीनी रोॅ साइज के
जबेॅ धीरे-धीरे बड़ोॅ होलियै
नौकरी लागलै
तेॅ मोटर साइकिल कीनी लेलियै
बाबूजी के साइकिल
आभियों छेबेॅ करै
साइकिल देखियै तेॅ पहिया
बेहद पतला दिखैं-
मोटरसाइकिल रोॅ पहिया रोॅ सामना
ठीक वहिनें ही
जेना बाबू जी
होय चललोॅ छेलै
एक सौ पाँच सालोॅ मेॅ।