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मेघराज / बिंदु कुमारी

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घिरी-घिरी आबै छय पहाड़ सेॅ
मेघराज हवा पेॅ सवार रे।
टप-टप पत्ता पानी चुबै छै
जेना महुआ मस्तानी रे।
पोखरी मेॅ पुरैनी पत्ता पर
मालुम पड़ै उजरोॅ-उजरोॅ मोती दाना रे।
कमलोॅ रोॅ पंखुरी के रस चुसी
कारोॅ-कारोॅ भौरा उड़ि जाय रे।
घिरी-घिरी आबै घटा पहाड़ सेॅ
मेघराज हवा पेॅ सवार रे।
हर-हर, हरहर नाला बही छै
नद्दी चलै मनमानी रे।
बापोॅ के घोॅन जेना बुड़ाबै
बेटा कपूत नदानी रे।
सनसन सनसन पछिया चलै छै
बरसै छै हथिया-कानी रे।
जारन जरबा इन्तजाम मेॅ जुटलोॅ
भौंजी हमरी कुलवंती रे।
करै रोपनी धनों के भैया
कनिया सुघर सयानी रे।
झट-झट, झर-झर धान रोपै छै
गावी गीत सुहानी रे।
गमछा लपेटी मांथा मुरेठा
कान्हा पेॅ होॅर लेकेॅ चले किसान रे।
बैलोॅ रोॅ जोड़ी हाँकी निकलै
अन्न रोॅ दाता भाग्य विधाता रे।
घिरी-घिरी आवै घटा पहाड़ सेॅ
मेघराज हवा पेॅ सवार रे।