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नारी-2 / बिंदु कुमारी

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नारी तोॅ शक्ति छेकोॅ, नारी तों भक्ति छेकोॅ।
नारी तों सृष्टि छेकोॅ, नारी तों देवी छेकोॅ।।
दुर्गा आरो काली छेकोॅ, नारी तोॅ भगिनी छेकोॅ।
लक्ष्मीबाई, जीजाबाई, मीराबाई, द्रोपदी आरो अनुसुईया छेकोॅ।।
हर प्रकार के कष्टोॅ केॅ दूर करै वाली छेकोॅ।
पुरूषोॅ केॅ जन्म दै वाली तों मातृ छेकोॅ।।
तों एत्तेॅ महान् छोॅ, कृपा निधान छोॅ।
दोसरा के जीवन-दात्री, स्वयं कहिनें निष्प्राण छोॅ।।
नारी आपनों दुर्दशा लेॅ, आपन्हैं जिम्मेवार छै।
पुरूष पर निर्भर रहबोॅ, समझै आपनों जन्मसिद्ध अधिकार छै।।
आबेॅ समय आबी गेलै नारी जागरण के।
दुर्गा काली चण्डी रूप धारण.....के।।
हे नारी! उतारी फेकोॅ लज्जा, संकोच के आवरण केॅ।
तोड़ी दोहोॅ छूआछूत, जातिवाद रोॅ सामाजिक बंधन केॅ
हे नारी तों अपना मेॅ आत्म विश्वास के भाव भरोॅ।।
स्वतंत्रता, समानता आरो स्वाबलंबन के शंखनाद करोॅ।