भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने महबूब से / चेतन दुबे 'अनिल'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:57, 2 नवम्बर 2017 का अवतरण
तुम्हारे सामने तुमसे
तुम्हारी ही शिकायत है
कि जितना बेवफ़ा समझा था
तुम उससे अधिक निकले।
तुम्हारी झील - सी गहरी
इन आँखों की इनायत है।
तुम्हारी ही गली के मोड़ पर
मेरे कदम फिसले।
ये मेरी भूल थी जो
मैंने तुमको बेवफ़ा समझा
मगर तुम बेवफ़ाओं
से भी आगे दो कदम निकले।
तुम्हारे प्यार की तासीर में
बेचैन मेरा दिल
यही ख्वाहिश।
तुम्हारे द्वार पर ही
मेरा दम निकले।