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स्वाभिमान / राधेश्याम चौधरी

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युग-युग के छोॅ तॉे अभिमानी।
छोॅ तोॅ युग पुरुष अवतारी।।
वाणी मेॅ छौं तोरा सदाचार।
भीतर कैन्हौंनै तनियोॅ कदाचार।।
तोरोॅ तेजपूर्ण चेहरा पर सूरज चमकै।
तोरा खातिर सरंग विमल दमकै।।
अंग जनपद के साहित्यकारे तोरा मानै।
जन-गण कंे चिर आश्रय जानै।।
हम्मेॅ ‘अंग भूमि’ पर ठाढोॅ आय।
लैकेॅ मंत्र प्रदीप प्रभात सेॅ भाय।।
प्रदीप प्रभात केॅ ‘अंगिका’ नाम सेॅ जानै छै।
व्यक्तित्व हिनकोॅ मांटी सेॅ जुड़लोॅ छै।।
गुंजै सरंगोॅ मेॅ जय-जय-जय।
जय-जय ‘अंगिका’ जय अंगेश।।