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शुक्रगुजार छी हम्में / उमेश भारती
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हम्में एगो नज्म लिखलेॅ छियै
तोरोॅ नाम
ऊ नज्म हमरोॅ जिनगी क एगो हिस्सा छिकै।
ऊ हिस्सा छिकै -
झूमतें होलोॅ हरसिंगार के
बेला आरो चमेली के सुगन्ध के।
तोहें चाहोॅ तेॅ
कहियो एकरा पढ़ी लियोॅ।
हमरोॅ कलम के ईमानदारी केॅ
दाद दियौॅ।
हमरोॅ जिनगी के कैक्टस
तोरोॅ ई हरसिंगार, बेला
आरो चमेली के सुगन्ध के
शुक्रगुजार छै
कि यैं वसन्त देखेॅ सकलकै!