भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन में उठता यही सवाल / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 6 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे पास फटे कपड़े क्यों
राजू पहने नई पोशाकें
मैं तरसूँ क्यों भुने चनों को
सौरभ खाए पिस्ता, दाखें
बापू जी भर मेहनत करते
लेकिन फिर भी हैं कंगाल
मन में उठता यही सवाल ...
माँ कहती हैं हम ग़रीब हैं
वे अमीर के बच्चे
मुझे मारते हैं वे मिलकर
फिर भी हैं वे अच्छे
कुछ न करें सुमन के डैडी
फिर भी क्यों वे मालामाल
मन में उठता यही सवाल ...