भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घायल सपने / राजीव रंजन

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 9 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन |अनुवादक= |संग्रह=पिघल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरस रहा आज झमाझम
देखो कैसे बादल।
हर्शित धरती की आज बज रही
देखों कैसे पायल।
उम्मीदों के अद्धन में
कैसे पक रहा
खुशियों का चावल।
लेकिन फरेबी हवाओं से
आज भी सपने हो रहे
कैसे घायल।