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आसमाँ से आसरे को / अनीता सिंह
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आसमाँ से आसरे को
ताकते हैं बांध वाले।
हरहराती बाढ़ आई
संग अपने त्रास लाई.
कोई सोया कोई जागा
जो था जैसे वैसे भागा।
लुट गया घरबार सबका
कौन अब किसको संभाले।
राशनों की तीन बोरी
मुर्गियों की चार जोड़ी।
बँधी ही रह गई गईया
नहीं आई बूढ़ी मईया।
गिड़गिड़ाते पाँव पड़ते
कोई तो उनको बचाले।
बांध पर तंबु लगाए
दर्द सीने में दबाये।
ज़िन्दगी जो बच गई है
कैसे क्या खाये खिलाये।
हलक में हीं अटक जाते
राहतों वाले निवाले।
सामने है तेज धारा
असलहे ले गई सारा।
नींद टूटी है नदी की
त्रासदी भीषण सदी की।
दर्द के संगी बने हैं
जानवर भी मांद वाले।