भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन पटल पर / अनीता सिंह
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मन पटल पर
क्षितिज को
आकार लेने तक रुकें।
मैं धरा धरणी धरित्री
तू फ़लक अम्बर गगन
तू पवन पानी सुधाकर
मैं हवा विद्युत् अगन
आ, परस्पर
स्नेह का व्यापार
होने तक रुकें।
पुष्प प्रेमी तुम भ्रमर हो
मैं कुसुम की सखी तितली
तुम रसिक रस पान करते
ढूंढने मैं रंग निकली
धरा पर
मकरंद से
श्रृंगार होने तक रुकें।
कृति ईश्वर की पुरुष तुम
रूप रंग ओ गान तुमसे
है प्रकृति मुझमें समाहित
धूप गंध ओ तान मुझसे
नव दिवस की
कल्पना
साकार होने तक रुकें।