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हवा को क़ैद करने की साजिश / गोविन्द माथुर

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वे हवा को क़ैद कर

कहते है कि-

मौसम का बयान करो


उस चरित्रहीन मौसम का

जिसको तमीज नही है

हरे और पीले पत्तों में अन्तर की

उसकी बदतमीजी का गवाह है

ये सूखी टहनियों वाला पेड़


ये केवल पैतींस वर्ष में

बूढ़ा हो गया पेड़

जिसके पत्ते अभी

ठंऽऽऽऽऽऽडी हवा में

झूम भी नही पाए थे कि

साजिश शुरू हो गई


इस पेड़ की जड़ो में

उन लोगों का ख़ून है

जो शब्दों को

हवा में विचरने की

आज़ादी चाहते थे


उन लोगों का ख़्वाब था कि

इस पेड़ से निकलने वाली

लोकतन्त्र, स्वतंत्रता, समानता की


टहनियाँ पूरे रेगिस्तान में फैल जाएगी

जिसके पत्तों की हवा से

शब्दों को एक नई ज़िन्दगी मिलेगी


लेकिन उनके उत्तराधिकारी

जंगल का दोहन कर

अपने शोंटों के घरों की

सुरक्षा मे व्यस्त हैं

हवा को क़ैद कर खुश हैं


वे नहीं जानते

हवा कभी क़ैद नही हो सकती

ये हवा प्रचंड आँधी बन कर

उनके शोंटो के घरों को

चूर कर देगी

शोंटो के करोड़ों टुकड़े

ख़ून के कतरों में बदल जाएंगे

ख़ून का हर कतरा

एक-एक शब्द होगा

बयान करेगा मौसम का

एक-एक शब्द

बदला लेगा हवा को

क़ैद करने की साजिश का।