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विदा में चार गद्य-दृश्यगीत / तेजी ग्रोवर

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(बेटू के लिए)

1.
हर जगह ज़मीन की बर्फ़ पर टूटे हुए तारों के जिस्म-ही-जिस्म
सोए हैं। कोई नहीं कह सकता कि ये टूटे हुए तारों के
जिस्म हैं।

उनके बेटे की बात हर किसी ने उनसे ऐसे की जैसे मृत्यु
ही न हुई हो। रातें उनकी आँखों में अब सोने नहीं आतीं
और पत्नी उसी मिट्टी से फूलदान बनाने लगी हैं जिससे
कहते हैं कि उनका बेटा बना हुआ था।

इक्कीस बरस उसमें बन चुके थे, जब वह गया, जैसे
इक्कीस टेसू के फूल। इक्कीस फूलों के रंग से बर्फ़ पर
कोई खेलकर गया है।

वह आती है और चुपचाप लोहे के सन्दूक में से अपनी
युवा उँगलियों से उसकी सितारों वाली टोपी उठा लेती है।
उसे इस कमरे में बिलकुल नहीं रोना है।

2.

वह अपने दो-एक बालों को हल्के से खींचती हुई उसी कक्ष
में उपस्थित है जहाँ लोहे का सन्दूक है।

वह उसके ऊनी कपड़ों को फिर एक बार छूकर देखती है,
देह के अभाव में।

पर्णम्-नर... अप्राप्त देह के लिए शब्द-कोश में मिली हुई
ध्वनि को बुदबुदाना उसके स्वभाव में नहीं है।

उसे पता है असम्भव शब्द को बुदबुदाने से कुछ धीरज मिल
सकता है, लेकिन यह भी उसके स्वभाव में नहीं है।

वह अपनी देह के सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ लोहे के सन्दूक
के सामने बैठी है।

3.

उनकी आँखें आँसुओं का घर हैं।

फिर भी वे इसी कक्ष में किसी बात पर खिलखिलाकर
हँस पड़ी हैं।

उन्हें लोहे के सन्दूक में उसके ऊनी कपड़ों के साथ नीम
के पत्ते रख उसे बन्द करना है।

इस साल भी वे इसे ठीक वैसे ही करेंगी जैसे अब तक।

कुछ कपड़े वे मृत्यु को भी तहाने के लिए देंगी जो उनके
घर आई है। जैसे किसी बच्ची को झूठमूठ का काम सौंप
रही हों।

4.

हमने उस कक्ष का एकान्त भंग करने के सिवा वहाँ कुछ
भी नहीं किया।

हम तब भी वहाँ बने रहे जब कक्ष छोड़ने से पहले वह
अपने जिस्म की पूरी क़शिश के साथ वहाँ उपस्थित थी।

तब भी जब वे पृथ्वी का अब टूट चला धैर्य लिए नीम
के पत्ते रख रही थीं, जैसे वे अब सिर्फ़ उन कपड़ों की
माँ हों।

उन ऊनी कपड़ों के साथ नायिका की वह मुलाक़ात शायद
अन्तिम थी। उस सन्दूक में से सिर्फ़ एक सितारों वाली
टोपी उठाकर उसे वहाँ से चली जाना था। उसे विदा करने
के बाद वे सन्दूक को उस कक्ष से उठा देने वाली थीं।

उस समय हमारा उस कक्ष में होना सुर में नहीं था।

वे नीम रखकर उन कपड़ों को किन कीड़ों से बचा रही
थीं, हमें नहीं मालूम, लेकिन उस समय हमारा उस कक्ष में
होना क़तई सुर में नहीं था।