मैं पीठ किए सोई रही
कितना ख़फीफ़ था उनका कुतरना मेरी पीठ को
कितनी सारी रही होंगी वो मछलियाँ
कितनी अँगूठियों को उदरस्थ किए मुझ पर टूट पड़ी होंगी
मैं पीठ किए सोई रही
कितना ख़फीफ़ था उनका कुतरना मेरी पीठ को
कितनी सारी रही होंगी वो मछलियाँ
कितनी अँगूठियों को उदरस्थ किए मुझ पर टूट पड़ी होंगी