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कठपुतली की आँख / तेजी ग्रोवर

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One does not know [in Jacobsen’s poetry]
when the verbal weave finishes and when the space begins.
                                                                          Rilke

1.

दूर से कोई देखता है कठपुतली की आँख से
रात में गए हुओं के चिह्न उभरते हैं

एक ही झाड़ी जलकर ख़ाक हुई है
एक ही पतरिंगे के पंख झड़े हैं
एक ही पाँव का निशान है पानी के पास

प्यास लगती है
दूर से पता नहीं चलता, टीले के पार तक
किसे

वह अबुझ
पूछ-पूछ कर यात्री के पीछे जाती है

2.

रोशनी हर जगह चहचहाने लगती है
और पक्षी चमकते हैं

जो गए हैं
वे गए हैं अपनी छाया में सोए
वे आँसुओं की तरह सूख कर गए हैं

संकेत में
कोई संकेत भी नहीं है

कठपुतली सो सकती है
सूर्य की हवा में

3.

उनका जाना
कठपुतली की आँख में था

वे इतने रंगीन थे
कि कोई भी हरा सकता था उन्हें
इतने मोहक
कि उनके जाने का कोई पर्याय भी नहीं था
जिसे वे अपनी जगह भेज सकते थे

वे रख सकते थे, वे चाहते, तो अपने नृत्य को
जाने की जगह

वे एक आकार में
ठहर जाते
और अभिनय को तीर की तरह छोड़ देते

उनकी मृदुता
उनका भय
उनकी देह का स्वाँग, उनका प्रेम

कठपुतली की आँख में था

4.

वह देखती है उन्हें
वे देखने देते हैं

वह निहार
उनके अंगों में प्रत्यक्ष है
और दर्पण में नहीं है

बहुत दूर तक कुत्ते एक गन्ध के पीछे घूरते हुए जाते हैं
हल्की-सी हवा में एक तलवार हिलती है
और हवा की एक तितली गिर जाती है

वह देखती हैं उन्हें
वे देखने देते हैं

वह निहार
उनके अंगों में प्रत्यक्ष है
और दर्पण में नहीं है

एक अकुलाहट में वे उठकर पानी पीते हैं

चन्द्रमा
झील से
अक़्स को खींच लेता है

5.

बिम्ब के बिना रचना एक इच्छा थी

और इच्छा
अपने स्वभाव से बिम्ब के पीछे जाती थी

इस तरह
वे आए
और सरसराते हुए घूमने लगे यहाँ से वहाँ

वे धू-धूकर जलने लगे
और जलाने लगे

वे इतने मुखर हो गए
कि शान्त करना उन्हें
एक और रचना में व्यक्त होने लगा

फिर वे इतने शान्त
कि उठाने से भी उठते नहीं थे

फिर भी
दहकती रही अग्नि
सरसराहट
आती रही

6.

वे बिम्ब ही थे
जिनसे और बिम्ब उपजते थे
कुछ और मिट जाते थे
उनसे निकलना
उनकी अति के बाद ही सम्भव होता
उनका तिरस्कार
उन्हें रचने की सामर्थ्य से
रचने की सामर्थ्य को रचते भी बिम्ब थे
मिटाते भी थे

वे करघे
जो सुख
और दुख को रचने
सामने रखे दिखाई देते थे
उन्हीं में
सुख और दुख का वास था

पूरे प्रान्त में
करघों के सिवा कोई बिम्ब नहीं थे

प्राण में
काँप-काँप जाती थीं उँगलियाँ

7.

बारिश होने लगती है
कठपुतली की आँख में

अपने कुलों को बचाने
चींटियाँ
दायरों में घूमने लगी हैं

दानों को बगराते हुए
वे पूसे उठाते हैं
और खड़ी-खड़ी
बैठ जाती है एक चिता

कठपुतली की आँख में
कठपतुली के रंग उतर आए हैं

साँप की तरह
टकटकी लगाए
कोई एक इन्द्रधनुष-सा
तन जाता है दृश्य में

ग़ौर से देखो
तो कुछ नहीं है
कठपुतली की आँख में

8.

कहानी बुझ गई थी
अलाव से उठने का शुऊर
किसी में दिखाई नहीं देता था

वे बैठे रहे
अपनी चादरों की गुलकारी को छूते हुए
अपने सोने के दाँतों से मुस्कराते

पौ फट रही थी
कठपुतली की आँख में

सूर्य की जगह
कोयले सुलग रहे थे

9.

पगडण्डी के बीचों-बीच
पक्षियों की हड्डियाँ थीं
और सूर्य की धूप में
चमक रही थीं

उनका नाम लेने से वे उड़ते हुए सामने नहीं आते थे
उनके पैर कोमल थे
और गर्दन के रंगों से वे
चहचहाते फिरते थे वन में

अण्डे ही अण्डे थे
झाड़ियों के नीचे

हड्डियों में देखो
तो दुख दिखाई नहीं देता था

10.

वे उठे
और पानी पीने से पहले
उन्होंने दीवार को सजा दिया
कठपुतली की आँख से

प्यास लगी थी उन्हें
जो दीवार से दिख रही थी

वे जल्दी में थे
और पानी को उनकी देह में
रास्ता नहीं मिल रहा था

उन्होंने पुतलियों को नचाया
कभी ऊपर कभी नीचे

पानी
किसी हड्डी की तरह तड़प रहा था
कठपुतली की आँख में

11.

उसे भी नींद आती थी
कठपुतली की आँख को

लेकिन वह सोती नहीं थी

वह ज़िद थी
या धैर्य

कोई काम था उसे
या निष्काम थी वह
इसका पता लगाना कठिन था

कहीं नीचे
रँगों में हिलते हुए हाथ की तलवार में
कभी-कभी
पलक झपकने की आवाज़ आती थी
जिसे कठपुतली के कान से
वह सुन नहीं सकती थी

12.

उसकी आँख से
कुछ नहीं बरसता था

कुछ नहीं
जो अनस्तित्व की तरह था
अनस्तित्व
जो इच्छा में
उतर आता था

वह रेत में
रेत पर
रेत के बिना
एक चिह्न था
जिसके खेल में
इतना रँग दिखाई देता था

कि वह भी डर जाती थी
जो कहने को
सिर्फ़ कठपुतली की आँख थी

13.

रेत
तूफ़ान में थी

और
खुली हुई थी वह
जो कठपुतली की आँख थी

पनाह लेने
कई निर्गुणी आए
और चले गए

वे पक्षी
जिनकी आँख में रेत थी
वे भी पनाह लेने आए

घास
जो रेत में उगती थी

वह ओस
जो गिरती थी
तिनकों के हिलने से
और भी गिर जाती थी —
वह भी आई

वह धूप
जो ओस को पीती थी
उसे भी आना था
धूप की तरह
वह भी आई

और इस तरह
कोई अन्त नहीं था
कठपुतली की आँख में

उसे कुछ दिखाई नहीं देता था