भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलेगा तो चूम लेगी राह तेरे भी क़दम / जयप्रकाश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 21 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुश्किलें आसान होने का जतन कर ख़ुद-ब-ख़ुद।
टूट मत, उठ, हो सके तो दिखा बनकर ख़ुद-ब-ख़ुद।

अन्धेरों के लिए कोई रात ठहरी है कहाँ,
सुबह होगी, खिल उठेगी धूप छनकर ख़ुद-ब-ख़ुद।

चलेगा तो चूम लेगी राह तेरे भी क़दम
छोड़ कन्धे, भार अब अपना वहन कर ख़ुद-ब-ख़ुद।

पार जाना चाहता, जो थाम कर बैसाखियाँ,
वह भँवर में डूब जाता है उफ़न कर ख़ुद-ब-ख़ुद।

ठान लेगा, उठेगा तो आन्धियाँ छँट जाएँगी,
तब कहेंगे लोग, देखो, खड़ा तनकर ख़ुद-ब-ख़ुद।