भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ शब्द / रुस्तम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:02, 26 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ शब्द
तो बच ही जाएँगे
हज़ार-हज़ार शब्दों में से।

अब भी तो, बाबुश्का,
अब यहाँ हैं तुम्हारे होंठ,
ये,
यहाँ,
मैं सुन रहा हूँ इन्हें

प्रेम, मृत्यु या जुदाई
उच्चारते हुए।

प्रेम, जो कभी
मरता नहीं।
मृत्यु, जो कभी
टलती नहीं।

जुदाई जो
यह कविता है।

कुछ शब्द,
और कितना दुख।