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बिम्ब थक भी जाते हैं / रुस्तम

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बिम्ब
थक भी जाते हैं मुझसे
और
बिम्ब होने से।

निश्चित ही
उनके धैर्य की कोई सीमा है
धृष्ट
इस अजनबी के लिए।

निश्चित ही
वे स्वप्न लेते हैं
भिन्न एक दुनिया का
जिसमें कि वे प्रत्यय हैं।

फिर वे
प्रत्यय न होने का
स्वप्न भी लेते हैं।