भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस रात / रुस्तम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 26 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस रात
मैं अपने पिता को याद करता हूँ।
वह सुन्दर आदमी था,
वीरता से भरा हुआ।
शान्त और गुस्सैल,
वह तलवार का धनी था।
दुख को धीरज से सहन करना हमने उसी से सीखा था,
और सदा न्याय का पक्ष धरना।
अन्ततः दुख और अन्याय ने ही उसे ख़त्म किया :
वह मेरी माँ की मृत्यु को सह नहीं पाया,
और अपने समय के मामूलीपन को।