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नारे विकासवाद के लाते रहे बहुत / दरवेश भारती
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नारे विकासवाद के लाते रहे बहुत
नारों को नारेबाज़ भुनाते रहे बहुत
सचमुच के मोतियों से भरा घर मिला उन्हें
जो मोतियों-सी बातें लुटाते रहे बहुत
हँस-हँस के जो भी करते रहे मर्हलों को सर
एज़ाज़ उम्र-भर वही पाते रहे बहुत
ता'बीर पा सका न कोई, बात है अलग
आँखों में ख़्वाब यूँ तो समाते रहे बहुत
हासिल न हो सका बड़े-बूढ़ों को सुख कभी
चाहे सपूत उनके कमाते रहे बहुत
करते भरोसा किसपे, कहाँ थे भरोसेमन्द
दो-चार थे, वो नाज़ दिखाते रहे बहुत
इन्सानियत के पहरुओं का पूछिए न हाल
'दरवेश' पहरुए ये रुलाते रहे बहुत