मन-मीत चले आओ (माहिया) /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
54
मन-मीत चले आओ
दो पल बाकी हैं
सीने से लग जाओ।
55
तन से तुम दूर रहे
पर सूने मन में
तुम ही भरपूर रहे ।
56
बस इतना जाने हैं-
इस जग में तुमको
हम अपना माने हैं।
57
जाने कब आओगे !
बाहों में खुशबू
बनकर खो जाओगे।
5
कुछ समझा नहीं आता
कितने जन्मों का
मेरा तुमसे नाता ।
59
जब अन्त इशारा हो
होंठों पर मेरे
बस नाम तुम्हारा हो।
60
जिस लोक चला जाऊँ
चाहती इतनी-सी-
तुमको ही मैं पाऊँ।
61
दीपक लाखों बाले
तेरे बिन मन से
रूठे प्यार उजाले
62
तुमको जब पाऊँगा-
पूजा क्या करना
मंदिर क्यों जाऊँगा।
63
चन्दा तुम खिल जाना
सूनी रातें हैं
धरती से मिल जाना।
64
अम्बर भी अकेला है
प्यासी धरती से
मिलने की बेला है।
65
जीवन में प्यास रही-
जो दिल में रहते
मिलने की आस रही।
66
बादल तुम ललचाते
आकर पास कभी
क्यों दूर चले जाते ।
67
धरती ये प्यास-भरी
बादल रूठ गए
मन की हर आस मरी।
68
तुमको पा जाऊँगी
कब तक रूठोगे
हर बार मनाऊँगी।
69
इस आँगन बरसोगे
प्यासा छोड़ मुझे
तुम भी तो तरसोगे।