सुगना मुण्डा की बेटी-5 / अनुज लुगुन
सुगना मुण्डा की बेटी
उतनी ही अवमानना के साथ
दूसरी ओर से आवाज़ गूँजी —
‘शूद्र!’
कौन मुझे कहता है?
मैं भील हूँ, लड़ाकू योद्धा भील,
हमने आज तक किसी की ग़ुलामी नहीं की है
सुनो ब्राह्मण पुजारी!
हम तुम्हारी वर्ण-व्यवस्था से बाहर हैं
देखो, मेरी मजबूत भुजाओं को
इन्हीं भुजाओं ने
तुम्हारे पुरुषोत्तम का उद्धार किया था
हमें कोल कहो, किरात कहो,
लेकिन ‘शूद्र’...???
कोई किसे कैसे शूद्र कह सकता है ?
तुम मुझे अपनी साज़िश में फँसा नहीं सकते’
अवमानना से
अनगिनत वर्षों की अवैध विरासत
अचानक हिल उठी थी
पुजारी ने कमण्डल से पानी निकाल कर
श्राप के शब्दों के साथ उसकी ओर फेंका
और तब सूरज दो टुकड़ों में बँटकर
आग का गोला हो गया
जो हुकनू की आँखों में भी उतर आया
अब तक की बची उसके पुरखों की विरासत
गीतों में तनी धनुष ही थी
वही था उसका प्रत्युत्तर
तब पुजारी ने क़लम उठाया
और हुकनू का तीर पिघल कर
उसकी पोथी में समा गया
पुजारी ने मन्त्रोच्चार करना शुरू कर दिया
उसके मन्त्र से पैदा होने लगे
हनुमान, बन्दर, रीछ,
गिद्ध, साँप, नाग
दैत्य, दानव सब
और दौड़ पड़े हुकनू की ओर
पुजारी ने ऊँची आवाज़ में कहा
यही है तुम्हारा कुल
यही हैं तुम्हारे वंशज-पुरखे
महिषासुर, गयासुर,
हुकनू ने फिर तरकस चढ़ाया
लेकिन इस बार
उसके ही लोग उसकी ओर दौड़ पड़े
हुकनू ने ऊँची आवाज़ में कहा —
‘हम राक्षस कुल के नहीं हैं
दैत्य-दानव, बन्दर, रीछ नहीं हैं
हम मनुष्य हैं
और हमारा सम्मानित इतिहास है,
उसके दूसरी ओर से
फिर आवाज़ आई
‘राम ही सबके पूर्वज हैं
राम के ही सब वंशज हैं
राम नाम ही सत्य है
राम का मान हमारा मान है’
उसी आवाज़ में हुकनू ने भी कहा —
‘हमारे पूर्वज राम से
पहले के बाशिन्दे हैं
और हमारी वंशावली
केवल पैतृक नहीं है’
और तब तक
हुकनू को उसके ही लोग घेर चुके थे
उसने देखा
सब उसके ही भाई हैं
बहनें हैं, चचेरे हैं, ममेरे हैं
उनके हाथों में झण्डा है
तलवार है, लाठी है, विस्फोटक है
उनमें केवल शोर है,
इसी के बीच दूर से कहीं
दूसरी मद्धिम आवाज़ भी सुनाई दी
‘हम मसीही हैं, हम बौद्ध हैं, हम...हैं’
हुकनू ने देखा
जहाँ ब्राह्मण पुजारी था
वहाँ केवल एक दार्शनिक परछाई थी
जो लगातार
विजयी अट्टहास कर रही थी।
पाँचवें से ढेचुवा पक्षी ने कहा —
‘मैं गई थी उन्हें मना करने
कि वे रात-दिन भट्ठा न जलाएँ
चिमनी से इतना ताप न उगलें
बर्फ़ पिघल रही है
जलस्तर बढ़ रहा है
विनाश होगा
मनुष्य के कृत्यों का फल
निर्दोष सहचरों को भी भोगना होगा
और वे हँसते रहे, मुझे दुत्कारते रहे
कहा
‘तुम असभ्य, जंगली,
हमें सिखाते हो
क्यों मानें तुम्हारी बात?
क्या है तुम्हारी औकात?’
और वे मिसाइल और युद्धक विमान सजाते रहे
वह यूरेनियम जादूगोड़ा का ही था
वही लोग थे, वही ज़मीन थी
कोई लूल्हा हो गया था
कोई लंगड़ा हो गया था
मनुष्यता ही विकलांग हो रही थी
हमले से पूर्व
मनुष्य ने मनुष्य को तोड़ा था
हिरोशिमा-नागासाकी के बाद
फिर से किसी ने बम फोड़ा था
कहीं इराक था, कहीं अफ़ग़ानिस्तान था
कहीं इस्रायल था, कहीं फ़िलिस्तीन था
कहीं सीरिया था, कहीं कश्मीर था
कहीं चीन था, कहीं तिब्बत था
ब्रह्माण्ड में मनुष्यों का एक ही मानचित्र था
मानचित्र पर एक ही हमलावर था
एक ही बाज़ार था, एक ही पूँजी थी
वही युद्ध की कुँजी थी,
कुछ पल मौन रही
आँखें उसकी नम रही
फिर ढेचुवा ने कहा —
‘सोसोबोंगा का नया संस्करण ऐसा ही होगा
लुटकुम हड़म लुटकुम बुढ़िया तुम ही होगी’
कहकर ढेचुवा उड़ गई।
छठे ने देखा —
‘उगता हुआ भोर का सूरज
उसकी आँखों में लोहे की बेड़ियाँ थीं
देह के चारों ओर सलाखें थीं
और उसके आसपास मण्डरा रहे थे गुप्तचर
वह सूरज पहले एक बच्चा था।
उसने सिर्फ़ इतना ही कहा था —
‘कुतुब मीनार, ताजमहल, खजुराहो के सौन्दर्य की नींव
मेहनत और पसीने के शोषण का प्रतिफलन है,
कवि! तुम वहाँ देखो
जहाँ कारीगर की
इतनी अधिक घिसी हुई खुरदुरी हथेली है कि
वह अपने बच्चों और पत्नी को
अपनी ही कला उपहार में भी नहीं दे सकता,
जहाँ एक किसान है, मज़दूर है
हल की मूठ है, मिट्टी है और मुट्ठी भी।’
उस बच्चे ने बना दिया था
खेल-खेल में मिट्टी की जीवन्त मूर्ति
जिसमें उसकी माँ का सख़्त चेहरा था
जो रोज़ दूसरों के खेत में काम कर लौटती थी
और एक दिन
जब वह हमेशा के लिए नहीं लौटी
तो उसे किसी बुजुर्ग ने
चुपके से सुना दी थी
उसकी अग्निपरीक्षा की कहानी
तब से माना जाता है कि
रात में उभरने वाली विद्रोही आकृतियाँ
उसी बच्चे की मिट्टी से बनी हैं,
ध्यानस्थ चौंकी
‘अरे! यह तो नहीं है
आदिवासी जन
फिर भी है सत्ता से उद्विग्न।’
अन्तिम शोधार्थी थी
सुगना मुण्डा की बेटी,
अरे! वह तो
उन छह कथाओं में स्वयं ही शामिल है,
साथ ही उसने देखा यह भी दृश्य
जो उनमें कहीं नहीं था
न ही औरों ने उसे देखा —
पड़हा सभा में
बैठे हैं
अपने-अपने गोत्र के राजा
और स्त्री-पुरुष सभी जन
बहस गरम है
पक्ष-प्रतिपक्ष अपने-अपने दावे के साथ हैं,
लड़की ने कहा —
‘मुझे अपने माँ-पिता की
सम्पत्ति का पूरा हिस्सा चाहिए’
अधेड़ पुरुष ने प्रतिपक्ष से कहा —
‘मैंने उसके माँ-पिता की मौत के बाद
इस लड़की का लालन-पालन किया है
वैसे भी वह ज़मीन मेरे पिता की है
इसलिए उसे मैं ही जोतूँगा
मेरा हक़ है यह’
उनके गोत्र के राजा ने
अपने अनुभव के पके बालों
को एक बार सहलाकर कहा
‘यह ग़लत है जैतू,
मुण्डा बेटी का अपने माँ-पिता की
सम्पत्ति पर पूरा हक़ है
यह बच्ची जो चाहेगी
पड़हा का फ़ैसला वही होगा
तुम जो बार-बार काग़ज़
लहरा कर अपना दावा जता रहे हो
वह ‘कम्पनी तेलेंगा’ लोगों का बनाया हुआ है
उनके लिए बेटियों का मान कुछ भी नहीं था
इसलिए उन्होंने काग़ज़ में नहीं लिखा अपनी बेटियों का नाम
ज़मीन और सम्पत्ति के हक़दार बेटे ही बनाए जाते रहे
मुण्डा अपनी बेटियों का मान रखते हैं
पड़हा उस काग़ज़ को नहीं मानती
जिस पर बेटियों का कोई हक़ उद्धृत नहीं है
और तुमने जो कहा कि
कुछ इलाके के मुण्डा ऐसा नहीं करते
तो हम यह भी जानते हैं कि
कुछ मुण्डाओं का व्यवहार अब दिकुओं जैसा है
वैसे ही वे अपने रीति-विधान को मोड़ रहे हैं
हमारा पड़हा यह नहीं स्वीकार कर सकता है’
और सभा ने रखा समाज के सामने विकल्प
कि यह बच्ची जब तक नाबालिग है
उसकी देखरेख के लिए
वह स्वयं समाज से किसी का चयन करेगी
या, वह स्वयं सक्षम है तो स्वतन्त्र रहेगी,
और जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती
तब तक सारी सम्पत्ति उसकी होगी
उसके विवाह के बाद
सब कुछ समाज में हस्तान्तरित हो जाएगा,
और यदि वह अविवाहित रहना चाहती है
तो उम्र भर वह सम्पत्ति की अधिकारिणी है
मृत्यु उपरान्त सब कुछ समाज में हस्तान्तरित हो जाएगा,
सभा के फ़ैसले पर सबकी सहमति हुई
सबने जदुर गाया, जदुर नाचा
जैतू की आँखों में केवल रोष था
आँखें लाल हो रही थीं
नाख़ून पीले हो रहे थे
और दाँत नुकीले
वह बाघ हो रहा था
वह उलट्बग्घा बन रहा था।’
बिरसी ने देखा
सँयुक्त सात कथा, सात जीवन
तो क्या वह ‘गोमके’ होगी?
डोडे वैद्य ने कहा था —
‘सात कथा, सात जीवन का साक्षी
होगा अगुआ, होगी नेत्री’
अपनी-अपनी यात्रा पूरी कर
लौट चुके थे परीक्षार्थी सब
डोडे वैद्य का
अन्तिम विश्लेषण बाकी था अब
परीक्षार्थी परीक्षा पूरी कर चुके थे
शोधार्थी ज्ञान शोध चुके थे
हतप्रभ थे डोडे वैद्य
कि कैसे सातों जन सफल हुए
सात कथा, सात जीवन
उनके जीवन के अन्तिम चरण में फलित हुआ
अब से पहले होते थे दो या तीन जन ही सफल
बाकी लौट आते थे परीक्षा छोड़ कर
कि उनसे सध नहीं सकता इतना कठिन जीवन
डोडे वैद्य की अँगुलियाँ
अपनी सफ़ेद दाढ़ियों को फेर रही थीं
आश्चर्य और अविश्वास था बार-बार,
वे परीक्षकों को देखते
आँखें बन्द करते
पुरखों का स्मरण करते
खूट से बतियाते
फिर भी एक दुश्चिंता
उनकी वृद्ध देह को कँपा जाती —
‘सात कथा, सात जीवन का प्रतिफल!
क्या कोई महामारी का संकेत है?
या, कोई अकाल होगा?
या, आदमखोर होगा भयावह और हिंसक...?