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खा गए हिन्दुस्तान तुम्हारी ऐसी तैसी / सुरेन्द्र सुकुमार
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खा गए हिन्दुस्तान तुम्हारी ऐसी तैसी।
गाते जन मन गान तुम्हारी ऐसी तैसी।
कूकर बन कर कुकरम करते ध्यान कुटी में,
बनते हो भगवान तुम्हारी ऐसी तैसी।
घर बैठे ही चीज़ें यारो बेच रहे हैं,
घर ही बनी दुकान तुम्हारी ऐसी तैसी।
हनी प्रीत औ राधे माँ जैसी देवी हों,
क्यों पूजें भगवान तुम्हारी ऐसी तैसी।
वर्षों का सामान पियारो जोड़ रहे हो,
जाना है शमशान तुम्हारी ऐसी तैसी।
जनता भेड़ बकरियों जैसी बँधी हुई है,
संसद बनी मचान तुम्हारी ऐसी तैसी।
रबड़ी वाले लच्छे नेता उड़ा रहे हैं,
जनता को रमजान तुम्हारी ऐसी तैसी।
होंठ तुम्हारे सुनो रक्त से रंगे हुए हैं,
फिर क्यों खाते पान तुम्हारी ऐसी तैसी।